26.10.08

खली की याद सताती है... (पुन: प्रकाशित)

मित्रों बैठे-बैठे बकवास हो गई तो उसे छाप दिया। कृपया पढ़कर अपनी राय से अवगत कराएं।
बहुत दिन हुआ खली को देखे। मुझे उनकी याद सता रही है। भूत-प्रेत देखे भी बहुत दिन हुआ। राखी का दीदार हुए भी एक अरसा बीत गया। आकाश गंगा में हर क्षण होने वाले विस्फोट भी अब नहीं सुनाई देते। ‘सावधान! वो आ रहे हैं’ का भी कोई पता नहीं। साईं बाबा के चमत्कार भी अचानक कम हो गए हैं। महामशीन भी बिगड़ गई है। इसके ठीक होने में कोई दो-तीन महीने लगेंगे। जब तक चालू नहीं होती तब तक पृथ्वी के नष्ट होने का कोई डर नहीं है। कुल मामला ‘डर’ का ही है और मैं डरना चाहता हूं। आदत जो लग गई है।
खली वाले खेल में मुझे डर ही लगता है और चिन्ता भी होती है। महावीर को पंद्रह-बीस लोगों से भिड़ना होता है। यह खेल ऐसा है कि यहां रेफरी भी सुरक्षित नहीं होता। उसकी भी भयंकर ठुकाई होती है। पहलवान लोग ठांव-कुठांव मारते हैं। मौत का वैसे ही कोई ठिकाना नहीं है। खली भारतभूमि का इकलौते महाबली हैं। वह महफूज रहें ऐसी मेरी शुभकामना है। बाकी सुशील कुमार, राजीव तोमर, जगदीश कालीरमन वगैरह को तो अपन लोग जानते भी नहीं। सुशील भइया की वजह से अब थोड़ा-थोड़ा जानकार हो गए हैं। इसी बात को लेकर एक वरिष्ठ पत्रकार मुझ पर कुपित हो गए। ओलम्पिक से पहले का वाकया है। हुआ यूं कि वह खली को लेकर काफी उत्साहित थे और एक दिन अचानक मेरे मुंह से निकल गया कि 90 फीसद भाइयों को मालूम नहीं कि तीन ऐक्चुअल पहलवान ओलम्पिक के लिए क्वालिफाई कर गए हैं। बस जनाब खेल गए। लगे गियर में लेने का प्रयास करने। मैं जल्दी गियर लगने नहीं देता इसलिए गाड़ी डिरेल होने से बच गई।
भूत-प्रेत से तो सभी डरते हैं। वैसे राखी भी कम डरावनी नहीं हैं। मुझे उनकी बोल्ड बातों और स्टेप से डर लगता है । कमउम्र लड़कियां गुमराह भी हो सकती हैं। एलियन और आकाश गंगा की हलचलों के अपने खतरे हैं। शनि देवता तो छूटे जा रहे हैं। टीवी पर उन्होंने इतना डराया कि बीमारी की हालत में मैं सपरिवार चला गया शनि मन्दिर। वहां भारी भीड़ में किसी ने पर्स मार दिया। पैसे, मकान की चाभी, एटीएम आदि ले उड़ा। वापस जाने के लिए किराया नहीं बचा। माता जी ने कहा कि शनि महाराज ने सस्ते में बचा दिया।
अब देखिए अंक ज्योतिष का कमाल। 08-08-08 को प्रलय होने जा रहा था तो माया सभ्यता की भविष्यवाणी भी कन्दरा में छिपने को कह रही थी। वैसे शून्य से लेकर नौ तक के मूलांक हैं अजीब। कभी कोई खेल कर सकते हैं। 08-08-08 के बाद अब 09-09-09 की बारी है। इसका कुल योग 27 आता है। फिर 2 और 7 को जोड़ देने पर योगफल 9। इस तरह 09-09-09 का योग भी 9। घोर प्रलय। अब 10-10-10 को देखें लगातार तीन 1 कुछ न कुछ संकेत अवश्य करता है। जितनी मर्जी हो डरिए। 11-11-11 में डबल 1 तीन बार। बाप रे बाप! क्या गुल खिलायेगा ये अंकों का महाजाल। अल्लाह जाने क्या होगा आगे?
वैसे, आजकल फेस्टिव सीजन है। लोक तो उत्सवधर्मी है ही। इसलिए टीवी पर इस समय इसी की बहार है। मेरा ‘मंगरुआ’ गरीबी से तंगहाल है। गरीबों को राह चलते ठेंस भी बहुत लगती है। सो, वह तमाम प्रकार से परेशान है लेकिन इस वक्त है मगन। कभी चारपाई पर लेटे-लेटे ‘निबिया के डारि मइया झूलेली झुलनवां’ टेरता है तो कभी होलिका दहन का दृश्य सोचकर रोमांचित हो उठता है। सोच रहा है छोटकी भउजी रहीं नहीं तो अबकी कबीरा किस पर गाऊंगा। वैसे उसकी कई भउजियां हैं। इसलिए छोटकी भउजी का गम कुछ हल्का हो जा रहा है।
अभी दीपावली बाकी है, उसके आगे छठ और हैपी न्यू ईयर है। तत्पश्चात लव यू... लव यू वाला त्योहार वैलेंटाइन डे आ जाएगा। सर...र.... र.... वाले महात्योहार होली का तो मुझे बेसब्री से इन्जार रहता ही है। कुल मिलाकर अभी कई महीने गाड़ी इन्हीं त्योहारों के सहारे सरक जाएगी। बीच में अमर सिंह की ‘चित्थड़-चिरकुट स्टाइल’ राजनीति की खबरों को जिन्दा रखेगी।
मां भगवती सभी का कल्याण करें। शुभ दीपावली!!!

25.10.08

प्यार तो पहली नजर में हो जाता है

यह तो बहुत बुरा हुआ। आतंकवाद के सिलसिले में अब हिन्दू भी धराने लगे। अपराध और आतंकवाद में फर्क है। आतंकवाद देश की सम्प्रभुता के विरुद्ध जंग है। वहीं, अपराध अपनी खीझ या आदत को सन्तुष्ट करने का तरीका। साध्वी ने खीझ मिटाई या हिन्दुस्तान की सम्प्रभुता पर चोट की इस पर गौर करने की जरूरत है। लेकिन सत्य यही है कि विस्फोट करके, बेगुनाहों का कत्ल करके आतंकवाद के विरुद्ध जंग नहीं लड़ी जा सकती। मालेगांव में जो भी लोग मारे गये वो आतंकवादी नहीं थे। शायद मात्र मुसलमान होने की वजह से उनको लक्ष्य बनाया गया। क्या गाहे-बगाहे मुसलमानों को मारकर आतंकवाद का जवाब दिया जा सकता है? कतई नहीं। शायद इस बात को साध्वी समझ नहीं पाईं। यही अतिरेक है। विचार इसी सीमा पर जाकर तालिबानी हो जाते हैं और मनुष्य को राक्षस में तब्दील कर देते हैं। दूसरी बात यह कि इस प्रकार की घटनाओं के हजार खतरे हैं। इसमें साम्प्रदायिक सद्भाव को चोट से लेकर कानून व्यवस्था का हलकान होना तक शामिल है। इसलिए इस प्रकार की कारगुजारियों का कतई समर्थन नहीं किया जा सकता। इसकी निन्दा और भर्त्सना ही उचित है।
यहां एक प्रश्न और खड़ा होता है कि साध्वी ने वास्तव में विस्फोट में सहयोग किया बिना न्यायालय की सहमति के यह कैसे कहा जा सकता है? लेकिन हमें साध्वी को घेरे में लेकर चलना ही पड़ेगा, नहीं तो बाटला हाउस वाले आतंकी भी सन्देह का लाभ पा जायेंगे। हां एक बात जरूर है कि इसमें भाजपा या संघ परिवार को नहीं लपेटा जा सकता। अव्वल तो यह कि किसी भी संगठन में काम करने वाले हर व्यक्ति की गारंटी सम्बन्धित संगठन नहीं ले सकता। संगठन को दोषी तभी ठहराया जा सकता है जब वह उसके क्रियाकलापों का समर्थन करे या स्वयं उस प्रकार का आचरण करे। इस वजह से संघ परिवार को कतई दोषी नहीं ठहराया जा सकता। हर संगठन में तमाम प्रकार के लोग रहते हैं। प्रारम्भिक सूचना के अनुसार साध्वी ---- नाम से अपना संगठन चलातीं थीं। संघ परिवार में इस प्रकार का कोई आनुषांगिक संगठन नहीं है। संघ परिवार का कोई व्यक्ति आगे चलकर अपना संगठन बना और चला सकता है। यह अलग बात है कि अगर ऊपर से ही सही उसका आचरण हिन्दुत्ववादी है तो संघ परिवार या उससे जुड़े लोगों का उसे समर्थन हासिल हो सकता है। आखिर पूरी कुण्डली खंगालकर तो किसी का सहयोग और समर्थन नहीं किया जाता है। प्यार तो पहली नजर में ही हो जाता है और फिर जात-पाति की परवाह कौन करता है। तकलीफें तो पींगें बढ़ने के साथ शुरू होती हैं। इस वजह से शिवराज सिंह चौहान या राजनाथ के साथ साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की तस्वीरें धर्मनिर्पेक्ष लोगों के लिए बहुत उपयोगी नहीं साबित हो सकतीं। साधु-महात्माओं के साथ इन लोगों का मिलना-जुलना अक्सर होता रहता है। कोई साधु अन्दर-अन्दर क्या करता है इसकी गारण्टी नहीं ली जा सकती। सामान्य तौर पर हिन्दु समाज में साधु-सन्तों का सम्मान और सत्कार करने की परिपाटी है। लेकिन कुछ-एक साधुओं के आचरण से जनता की इस आदत में बदलाव आया है। अब हर साधु को पाखण्डी समझने का चलन हो गया है जैसे हर नेता को लोग भ्रष्ट समझते हैं। दूसरी बात यह भी कही जाती है कि साधु का काम केवल भजन करना है लेकिन हिन्दू समाज के पतन का यह सबसे बड़ा कारण रहा है, इस पर आम जनमानस कभी गौर नहीं करता। एक मिनट में विचार बना लेना भारतीय समाज की फितरत है। चाहे कोई बुरा ही क्यों न माने लेकिन यह सत्य है कि अभी भी अधिकांश हिन्दुस्तानियों का बौद्धिक विकास न्यून है और चिन्तन-मनन का उनके जीवन में कोई स्थान नहीं है। स्वामी विवेकानन्द ने यह बात बहुत पहले कही थी लेकिन अफसोस कि आज भी इसमें कोई ज्यादा सुधार नहीं हुआ। खैर, विषयान्तर से अब विषय पर आते हैं। साधु-सन्तों को हिन्दु समाज को संगठित और मजबूत बनाने जिम्मेदारी लेनी चाहिए। शरीर से लेकर मन के स्तर तक यह कार्य आवश्यक है। लेकिन बम विस्फोट करके समाज, देश या जाति का भला नहीं किया जा सकता यह तो तय है।

8.10.08

खली की याद सताती है...

मित्रों बैठे-बैठे बकवास हो गई तो उसे छाप दिया। कृपया पढ़कर अपनी राय से अवगत कराएं।

बहुत दिन हुआ खली को देखे। मुझे उनकी याद सता रही है। भूत-प्रेत देखे भी बहुत दिन हुआ। राखी का दीदार हुए भी एक अरसा बीत गया। आकाश गंगा में हर क्षण होने वाले विस्फोट भी अब नहीं सुनाई देते। ‘सावधान! वो आ रहे हैं’ का भी कोई पता नहीं। साईं बाबा के चमत्कार भी अचानक कम हो गए हैं। महामशीन भी बिगड़ गई है। इसके ठीक होने में कोई दो-तीन महीने लगेंगे। जब तक चालू नहीं होती तब तक पृथ्वी के नष्ट होने का कोई डर नहीं है। कुल मामला ‘डर’ का ही है और मैं डरना चाहता हूं। आदत जो लग गई है।
खली वाले खेल में मुझे डर ही लगता है और चिन्ता भी होती है। महावीर को पंद्रह-बीस लोगों से भिड़ना होता है। यह खेल ऐसा है कि यहां रेफरी भी सुरक्षित नहीं होता। उसकी भी भयंकर ठुकाई होती है। पहलवान लोग ठांव-कुठांव मारते हैं। मौत का वैसे ही कोई ठिकाना नहीं है। खली भारतभूमि का इकलौते महाबली हैं। वह महफूज रहें ऐसी मेरी शुभकामना है। बाकी सुशील कुमार, राजीव तोमर, जगदीश कालीरमन वगैरह को तो अपन लोग जानते भी नहीं। सुशील भइया की वजह से अब थोड़ा-थोड़ा जानकार हो गए हैं। इसी बात को लेकर एक वरिष्ठ पत्रकार मुझ पर कुपित हो गए। ओलम्पिक से पहले का वाकया है। हुआ यूं कि वह खली को लेकर काफी उत्साहित थे और एक दिन अचानक मेरे मुंह से निकल गया कि 90 फीसद भाइयों को मालूम नहीं कि तीन ऐक्चुअल पहलवान ओलम्पिक के लिए क्वालिफाई कर गए हैं। बस जनाब खेल गए। लगे गियर में लेने का प्रयास करने। मैं जल्दी गियर लगने नहीं देता इसलिए गाड़ी डिरेल होने से बच गई।
भूत-प्रेत से तो सभी डरते हैं। वैसे राखी भी कम डरावनी नहीं हैं। मुझे उनकी बोल्ड बातों और स्टेप से डर लगता है । कमउम्र लड़कियां गुमराह भी हो सकती हैं। एलियन और आकाश गंगा की हलचलों के अपने खतरे हैं। शनि देवता तो छूटे जा रहे हैं। टीवी पर उन्होंने इतना डराया कि बीमारी की हालत में मैं सपरिवार चला गया शनि मन्दिर। वहां भारी भीड़ में किसी ने पर्स मार दिया। पैसे, मकान की चाभी, एटीएम आदि ले उड़ा। वापस जाने के लिए किराया नहीं बचा। माता जी ने कहा कि शनि महाराज ने सस्ते में बचा दिया।
अब देखिए अंक ज्योतिष का कमाल। 08-08-08 को प्रलय होने जा रहा था तो माया सभ्यता की भविष्यवाणी भी कन्दरा में छिपने को कह रही थी। वैसे शून्य से लेकर नौ तक के मूलांक हैं अजीब। कभी कोई खेल कर सकते हैं। 08-08-08 के बाद अब 09-09-09 की बारी है। इसका कुल योग 27 आता है। फिर 2 और 7 को जोड़ देने पर योगफल 9। इस तरह 09-09-09 का योग भी 9। घोर प्रलय। अब 10-10-10 को देखें लगातार तीन 1 कुछ न कुछ संकेत अवश्य करता है। जितनी मर्जी हो डरिए। 11-11-11 में डबल 1 तीन बार। बाप रे बाप! क्या गुल खिलायेगा ये अंकों का महाजाल। अल्लाह जाने क्या होगा आगे?
वैसे, आजकल फेस्टिव सीजन है। लोक तो उत्सवधर्मी है ही। इसलिए टीवी पर इस समय इसी की बहार है। मेरा ‘मंगरुआ’ गरीबी से तंगहाल है। गरीबों को राह चलते ठेंस भी बहुत लगती है। सो, वह तमाम प्रकार से परेशान है लेकिन इस वक्त है मगन। कभी चारपाई पर लेटे-लेटे ‘निबिया के डारि मइया झूलेली झुलनवां’ टेरता है तो कभी होलिका दहन का दृश्य सोचकर रोमांचित हो उठता है। सोच रहा है छोटकी भउजी रहीं नहीं तो अबकी कबीरा किस पर गाऊंगा। वैसे उसकी कई भउजियां हैं। इसलिए छोटकी भउजी का गम कुछ हल्का हो जा रहा है।
अभी दीपावली बाकी है, उसके आगे छठ और हैपी न्यू ईयर है। तत्पश्चात लव यू... लव यू वाला त्योहार वैलेंटाइन डे आ जाएगा। सर...र.... र.... वाले महात्योहार होली का तो मुझे बेसब्री से इन्जार रहता ही है। कुल मिलाकर अभी कई महीने गाड़ी इन्हीं त्योहारों के सहारे सरक जाएगी। बीच में अमर सिंह की ‘चित्थड़-चिरकुट स्टाइल’ राजनीति की खबरों को जिन्दा रखेगी।
मां भगवती सभी का कल्याण करें।