22.11.08

आँख मारने का चलन अब नहीं रहा

आँख मारने का चलन अब नहीं रहा। यह एक किस्म की छेड़खानी थी। इसे आप प्रणय निवेदन भी कह सकते हैं। प्रेमिका के प्रति प्रेम के इजहार के लिए प्रेमी द्वारा सामान्यत: यह घटना की जाती थी। साधारणतया इसे प्रेमीजन ही आजमाते थे और प्रेमिका के इशारे का इन्तजार करते थे। कहें कि इस कर्म पर पुरुष वर्ग का ही अधिकार था। तब प्रेम निवेदन की पहल पुरुष ही करते थे। शुरुआत करने का जिम्मा उन्हीं के कन्धों पर था। लड़कियों में नारी सुलभ लज्जा होती थी। आज भी होती है (मैं जूतम-पैजार नहीं चाहता)। गोया कि लड़के जब किसी पर फिदा होते तो उसे आँख मारते थे। मैं अब आँख मारने की विधि भी बताऊंगा हालांकि मैं खुद कभी इस योग्य नहीं हुआ। लोग पूछ सकते हैं कि ‘आँख मरौअल’ के पीछे इतना क्यों पड़े हैं? कोई अच्छी सी समाज सुधारू टाइप पोस्ट लिखते। लेकिन मैंने ठान लिया है कि आँख मारने के इस नष्ट हो रहे चलन पर ही अंगुलियां फिराऊंगा। जाने क्यों बहुत दिनों से कुछ लिख नहीं पा रहा हूं। अटल जी ने कहा था कि लेखन बहुत अवकाश मांगता है। लेकिन तमाम ऐसे लोग हैं जो अतिव्यस्त और परेशान होते हुए भी लिखते हैं। खैर, विषय पर आते हैं। जमाना बदल गया है। अब प्रेमपाठी लोग आँख मारने के बजाय मिस काल करते हैं। वैसे, मिस काल करने में रिस्क ज्यादा है। इसमें अगले के मोबाइल पर आपका नम्बर आ जाता है। वहीं आँख मारने में यह खतरा प्राय: नहीं रहता था। अगर लड़की ने शिकायत भी कर दिया तो साफ मुकर सकते थे। मैंने तो ऐसा नहीं किया। कह सकते थे कि उसको गलतफहमी हुई होगी। वैसे कई लड़के कहते थे कि आँख में ऐसे ही दर्द हुआ तो जरा सा मुलका दिया। हालांकि यह बहाना पकड़ा जाता था। वैसे ही जैसे ‘ग्वाल बाल सब बैर पड़े हैं, बरबस मुख लपटायो’।कई शातिर किस्म के लोग कह देते थे कि ‘’जाने दीजिए! बदमाश है, ऐसे ही नौटंकी करती रहती है।’’
तो जमाना बदलने के साथ-साथ लोगों की स्मार्टनेस में भी भारी इजाफा हुआ है। अब लोग ज्यादे बोल्ड हो गए हैं। याद करिए जब बदलाव की बयार बह रही थी तो एक सिनेमा आया जिसमें इलू-इलू गाना चला... दिल करता है इलू-इलू...। तो लोगों ने पकड़ लिया इलू-इलू। इसे ही इशारा बना लिया। लेकिन गाना इतना चल गया था कि इलू का फुल फार्म बच्चा-बच्चा समझने लगा। जैसा कि मैंने कहा कि अभी बयार बहनी शुरू हुई थी तो थोड़ा बहुत शील-संकोच बचा था। समय ने और करवट बदली तो मामला ओपन हो गया। भाई लोगों ने सीख लिया कि ‘आजू-बाजू मत देख आई लव यू बोल डाल।’ वैसे अब और एडवान्स समय आ गया है। जरा सा साथ हुआ तो तुरन्त बोल दिया कि सिनेमा देखने चलें। बाद में डेटिंग-सेटिंग तक चले जाते हैं। यह पहल अब सिर्फ लड़कों के जिम्मे नहीं रही, लड़कियां भी बराबर की भागीदारी निभा रही हैं। कन्धे से कन्धा मिलाकर चल रही हैं।

8 comments:

Udan Tashtari said...

नारी सशक्तिकरण का जमाना है भई.

Arvind Mishra said...

आदि जैवीय वृत्तियाँ तो आज भी उसी शिद्दत के साथ जारी हैं भाई -आपने छोड़ दिया तो इसका मतलब यह नही कि सारा जग ही उनसे मरहूम हो बैठा -आपके बताये युगीन बदलाव भी हैं और वे पुरानी कारगर तरीकीबें/तरीकें आज भी बदस्तूर जारी हैं !

श्यामल सुमन said...

बहुत खूब। कहते हैं कि-

रूखसार से जो गेसू मुलाकात कर रहे हैं।
कमबख्त ये दिन को भी रात कर रहे हैं।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

Anil Kumar said...

सन ९३ में भारत में केबल टीवी आया था, और दिल्ली में रहनेवालों को सबसे पहले इसका लुत्फ उठाने को मिला था। मैं उस समय १०वीं कक्षा में था, और तब से केबल घर में ऐसा लगा कि आज तक छुड़ा न पाये! हाँलांकि मैं टीवी बिलकुल नहीं देखता, लेकिन फिर भी "घर में केबल तो होना ही चाहिये" कहकर केबल लगा ही हुआ है। फिर उसके बाद १० सालों में मैं जवान होकर कॉलेज गया, और फिर उसके बाद नौकरीपेशा भी हुआ। खूब परिवर्तन देखा। पहले दोस्त लोग कहते थे "साले लड़की पटानी है तो बोल्ड होना पड़ेगा" - वह अलग बात है कि मैं कभी "वो वाला बोल्ड" नहीं हो पाया। इसलिये बार-बार क्लीन बोल्ड हुआ। २००३-२००५ के दो सालों में मैंने दिल्ली की कन्याओं में खासा परिवर्तन देखा। अब तो वे ही पहल करती हैं, फिर चाहे वो फोन पर डेटिंग हो, या दिल्ली-हाट पर लंच। मुझे बस बिल चुकाने के लिये जेब हल्की करनी होती थी, बाकी सब वह अ/स-बला ही करती थी। आज मैं विदेश में हूं, और कभी कभी किसी गोरी कन्या को शरमाते देखता हूँ तो मुझे दिल्ली की लड़कियों पर हँसी आ जाती है। भई लेकिन हमने तो ना तब शिकायत की थी, और ना अब कर रहे हैं। हम तो सिर्फ गीतोपदेश में यकीन रखते हैं - बस अपना कर्म किये जा रहे हैं। बाकी जो झोली में आ जाये, उसे प्रसाद समझकर खा लेते हैं। जय हो सबला नारी की!

P.N. Subramanian said...

हमने आँख मारती लड़की को भी देखा है. लेकिन अब जमाना बदल गया. आँख मरने की ज़रूरत हू नही रही -
हाय!
http://mallar.wordpress.com

Batangad said...

कह रहे हैं कि समाज सुधारू पोस्ट नहीं लिखेंगे और लिखा पूरी पोस्ट में है कि कैसे समाज सुधरता गया :)

बाल भवन जबलपुर said...

Sunder

Unknown said...

अॉख मारना मतलब लड़की पटाना और लड़की को प्रेमिका बनाना