भोर में 4 बजे त्वरित टिप्पणी
देश दहल गया। हिल गयी मुम्बई। हिल गया भारतीय जनमानस। शहीद हो गए हेमन्त करकरे। कई अन्य पुलिस अधिकारी और सिपाही भी युद्धक्षेत्र में शहीद हो गये। यह पूरी तरह से युद्ध है। सरकार और तमाम नेताओं को अब यह मान लेना चाहिए। रात दो बजे तक की सूचना के अनुसार दो आतंकी भी मारे गये हैं। मेरा मन डर रहा है। मुझे शंका है कि कहीं करकरे की शहादत को भी अमर सिंह झूठा न बता दें।
आतंक की जड़ें देश में गहरे पैठ चुकी हैं। दिल्ली विस्फोटों के बाद बाटला हाउस एनकाउंटर व अन्य गिरफ्तारियों से मुझे लगने लगा था कि सिमी टूट गया, बिखर गया। अब आतंक को खड़े होने में समय लगेगा। क्योंकि बताया जा रहा था कि अब देश के लोग ही आतंकी बनने लगे हैं और इनकी तादाद बहुत कम है। बाहर से सिर्फ इनको खाद-पानी मिलता है। सांस ये यहीं की हवा में लेते हैं। दिमागी और माली इमदाद ही इन्हें बाहर से मिलती है। बाहर के आतंकी अब सेंध लगाने में सक्षम नहीं रहे। लेकिन मेरी सोच भ्रम थी जो टूट गई। आतंकवादी बाजे पर नेता तराना तो गुनगुनाते ही हैं। लेकिन इस बीच नेता और बुद्धिजीवियों ने तराना गाना छोड़ दिया और बहुत गम्भीरता से आतंकवाद के बीच एक नये आतंकवाद ‘हिन्दू आतंकवाद’ की थियरी इस्टैब्लिश करने में जुट गये थे। इसे हम थियरी कहें या हाइपोथिसिस समझ में नहीं आता। बहरहाल, लोगों का ध्यान आतंकवाद, सरकार की असफलता आदि से हटने लगा। इस नयी थियरी को लेकर देश में बहस-मुबाहिसों का दौर चालू हो गया। बैठकें गर्माने लगीं। बुद्धिजीवियों और मीडिया के हाथ पर्याप्त मसाला लग गया। कुल मिलाकर असल मुद्दे से ध्यान हट गया। साध्वी प्रज्ञा इस नये आतंकवाद की प्रणेता बतायी गयीं।
फिलहाल विदेशी मीडिया पर भी रात के तीन बजे मेरा ध्यान है। उनका जोर इस बात पर है कि आतंकी ब्रिटिश और अमेरिकन की तलाश में थे। एक प्रत्यक्षदर्शी के हवाले से बीबीसी यह बात बार-बार गोहरा रहा है। उसका कहना है कि आतंकियों ने पूछा कि किसी के पास ब्रिटिश या अमेरिकन पासपोर्ट है? खैर उनकी चिन्ता जायज है। अपने देश के नागरिकों की वे चिन्ता करें तो यह उचित ही है। उन्हें ऐसा करना ही चाहिए। भारत के नक्शे-कदम से वे दूर हैं, यह राहत की बात है। देर-सबेर यहां के नेता भी इससे सबक ले सकते हैं। हो सकता है कि वे समझ जाएं कि पहले देश है, देश के नागरिक हैं तब और कुछ है। उनकी बेहद निजी राजनीति भी और कुर्सी भी। लेकिन बुद्धिजीवियों को क्या कहा जाए वे किस लालच में अंट-शंट क्रियाकलाप करते रहते हैं। समझ से परे है। झटके में बुद्धिजीवी बनने के फेर में, उदारवादी दिखने के फेर में, अहिंसावादी बनने के नाटक के तहत ऐसा स्वांग रचाया जाता है। निर्मल वर्मा ने एक बार कुछ इसी तरह का आशय जाहिर किया था।
अब रात के 3 बजकर 25 मिनट हो रहे हैं। ओल्ड ताज होटल की ऊपरी मंजिल में आतंकियों ने आग लगा दी है। यह होटल विश्व धरोहर में शामिल है। 105 साल पुराना है। आधुनिक हिन्दुस्तान के निर्माताओं में से एक जमशेद जी टाटा का मूर्त सपना। मैं टीवी पर इसे धू-धू कर जलते हुए देख रहा हूं। संवाददाता फायरिंग के राउंड गिनने में व्यस्त हैं। दोनों की अपनी मजबूरी है। मुझे पाकिस्तान के प्रसिद्ध होटल में हुए धमाके की याद आ रही है। यकीन मानिए उस समय मैंने सोचा था कि भारत में ऐसा नहीं हो सकता। उस हमले के बाद सुबह-सुबह अपने सहकर्मियों से बातचीत में मैंने कहा कि “हालांकि यहां भी आतंकवाद है, खूब है लेकिन उसकी तीव्रता उतनी नहीं। यहां एक ट्रक विस्फोटक कोई इकट्ठा नहीं कर सकता और इकट्ठा कर भी ले तो ऐसे ले के घुस नहीं सकता। पहली बात तो यह कि इतना साज-ओ-सामान कोई जुटा ही नहीं सकता…” ऐसा मैंने दृढ़ मत व्यक्त किया था। सुनते हैं कि पाकिस्तान में सरकार और कानून नाम की कोई चीज नहीं है। वहां कठमुल्लों का शासन है। लेकिन मेरा भ्रम फिर टूट गया। पाकिस्तान की तरह हिन्दुस्तान में भी वैसा ही हो गया। बल्कि उससे भी ज्यादा भीषण हमला हुआ। वहां ट्रक पर लदा विस्फोटक गेट तोड़ते हुए घुसा और दग गया। लेकिन यहां तो बाकायदे मोर्चेबन्दी हुई और खौफनाक मंजर सामने है। लगभग छ: घण्टे हो गये लेकिन आतंकियों का तांडव थमने का नाम नहीं ले रहा है। देश ने यह समय भी देख लिया। मेरे विचार से मध्ययुग में, 1857 की क्रांति के समय तथा विभाजन के वक्त जो घाव लगे, जो प्रहार हुए मुम्बई पर हुआ हमला उन्हीं के टक्कर का है। पता नहीं लोग अब साध्वी प्रज्ञा की चर्चा करेंगे या नहीं। एटीएस ने तो अपना प्रमुख ही खो दिया। जो फिलवक्त साध्वी प्रज्ञा प्रकरण के चलते इस समय काफी चर्चा में थे। हालांकि मुझे आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि धर्मनिर्पेक्ष जन साध्वी की ही चर्चा करेंगे। मूल तत्व पर न वह प्रहार करेंगे न सरकार। काश! वह ऐसा करते। तब शायद उन्हें यह नया काम 'हाइपोथिसिस ऑफ हिन्दू टेररिज्म' नहीं करना पड़ता।
और अब अंत में दो बातें और। आतंकियों ने अबकी बहुत देर तक तांडव मचाया। तांडव के लम्बा खिंचने से देश-विदेश का मीडिया तमाम मौकों पर पहुंच गया और सारा कुछ लाइव हो गया। वैसे, अमर, लालू, पासवान यह प्रश्न अवश्य पूछ सकते हैं कि करकरे ने बुलेटप्रूफ जैकेट पहनी थी या नहीं? ऐसे मौके पर घटिया राजनीति की बात करते समय मेरा मन खट्टा हो रहा है। लेकिन देश की कमान जब घटिया हाथों में हो तो अच्छे की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
26.11.08
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7 comments:
देश ने यह समय भी देख लिया। मेरे विचार से मध्ययुग में, 1857 की क्रांति के समय तथा विभाजन के वक्त जो घाव लगे, जो प्रहार हुए मुम्बई पर हुआ हमला उन्हीं के टक्कर का है।
सच कहा आपने, यह बहुत ही दुखद और शर्मनाक स्थिति है.
हेमन्त करकरे को तो केवल "हिन्दू आतंकियो" से ही निपटने का अनुभव था. उसने सोचा था कि बस वो जायेगा और उन लोगों को कान पकड़ कर बाहर ले आयेगा. आखिरकार इसी तरह तो उसने सारे के सारे "हिन्दू आतंकवादी" पकड़े थे.
अब शायद हमें अफजल को छोड़ना पड़े.
आतंकवाद से दुनिया का परिचय इस्लाम के ही जरिये ही हुआ है -और यदि हम इस नग्न और बेबाक तथ्य को नही देख सुन पा रहे हैं तो अभी हम ऐसी और आतंकवादी गतिविधियाँ देखेंगे ! आतंकवादी गतिविधियां यह थोड़े पहचान पाती हैं की यह कट्टर मजहबी है या निर्पेक्ष्वादी या फिर क्षद्म निर्पेक्षवादी ! सभी कत्लेआम के शिकार होते हैं .आज पूरी बेबाकी और निर्भयता के साथ आतंकवादी तत्वों की पहचान और पूरी शक्ति से उनके समूल नाश का वक्त है -ना दैन्यम ना पलायनम ! जो मानवता के दुश्मन है उनके साथ कोई ढिलाई नहीं !
कांग्रेस सरकार की नपुन्स्कता अब नाकाबिले बर्दाश्त हो चली है और सोनिया को तो इस देश की कतई समझ नही है जो केवल अपने चमचे चाटुकारों और अकूत पारिवारिक संपदा की बदौलत देश के शासन की बागडोर संभाले हैं -उन्हें जाना ही होगा -काउंट डाउन शुरू हो चुका है !
करकरे और शहीद पुलिस कर्मियों को श्रद्धाजलि !
sarkar vote parast prashasan note patast
सरकार सेना और संतो को आतंकवादी सिद्ध करने जैसे निहायत जरूरी काम मे अपनी सारी एजेंसियो के साथ सारी ताकत से जुटी थी ऐसे मे इस इस प्रकार के छोटे मोटे हादसे तो हो ही जाते है . बस गलती से किरेकिरे साहब वहा भी दो चार हिंदू आतंकवादी पकडने के जोश मे चले गये , और सच मे नरक गामी हो गये , सरकार को सबसे बडा धक्का तो यही है कि अब उनकी जगह कौन लेगा बाकी पकडे गये लोगो के जूस और खाने के प्रबंध को देखने सच्चर साहेब और बहुत सारे एन जी ओ पहुच जायेगी , उनको अदालती लडाई के लिये अर्जुन सिंह सहायता कर देगे लालू जी रामविलास जी अगर कोई मर गया ( आतंकवादी) तो सीबीआई जांच करालेगे पर जो निर्दोष नागरिक अपने परिवार को मझधार मे छोड कर विदा हो गया उसके लिये कौन खडा होगा ?
आईये हम सब मिलकर विलाप करें
आप सबकी टिप्पणियों के लिए हार्दिक धन्यवाद।
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