9.8.09

पत्रकार भाई बारिश जानते ही नहीं!

कल देर रात टेलीविजन पर एक खबर देखी। बड़ी महत्वपूर्ण खबर चल रही थी। सूखे पर। शुरुआत में ही बताया गया कि बुआई का मौसम बीता जा रहा और बारिश नदारद है। मन खिन्न हो गया। भयंकर अकाल पड़ गया है तो मनोवैज्ञानिक और सामाजिक रूप से मन का खिन्न होना लाजिमी है। लेकिन मन खिन्न एक और वजह से भी हुआ। रपट में शुरू में ही बता दिया गया कि बोअनी का मौसम बीता जा रहा है। अब आप लोग ही बताएं कि मौसम बचा ही कहां है जो बीता जा रहा है?10 अगस्त तक कौन सी चीज की बुआई बाकी है। अब कहां समय बचा है बुआई-कटाई का। धान, मक्का, बाजरा आदि इस काल की प्रधान फसलें हैं। 10 अगस्त या उसके बाद धान की रोपाई होगी तो वह पकेगा कब? तो बड़ी कोफ्त हुई। बता रहे थे कि बुआई का मौसम बीता जा रहा है।
अब आगे बढ़ते हैं। हरियाणा में बता रहे थे कि लगभग 50 फीसद (5-7 फीसद इधर-उधर ठीक से याद नहीं)बारिश कम हुई। इसका मतलब जितनी बरसात हुई उतनी ही और हुई होती तो मामला चकाचक था। दिल्ली में बता रहे थे कि 61 फीसद कम हुई। माने कि जितनी हुई अगर उतनी और हुई होती तो लगभग मामला ठीक रहता। अब आप लोग बताएं कि दिल्ली में बारिश ही कहां हुई। ऐतराज मुझको वहीं से है, समझ से है, जब हल्की सी बरसात पर हाय-तौबा मचा देते हैं कि 'दिल्ली में झमाझम बारिश'। मैं हैरान हो जाता हूं। इसका मतलब झमाझम बारिश इन्होंने कभी देखी ही नहीं। अधिकांश हिन्दी पत्रकार कहीं न कहीं गांव-देहात से ही आये हैं। फिर भी मध्य जुलाई में हुई हल्की सी बरसात (जबकि उसके पहले तक एक बूंद भी मानसूनी बरसात न हुई हो) पर, आधे घण्टे की बरसात पर नाचने लगते हैं। इनका मन-मयूर नृत्य करने लगता है। नृत्य करना तो ठीक लेकिन 'जैज' ठीक नहीं। शेष देश की जनता को बताते हैं कि दिल्ली सराबोर हो गई तृप्त हो गई। यह नहीं बताते कि 'दिल्ली में गिरी दो बूंद जिन्दगी की'। हालांकि भारी अवर्षण के बाद यह दो बूंद जिन्दगी की भी नहीं कही जा सकती। क्योंकि गिरते ही यह छन्न से जल जाती है गर्म तवे पर पड़ी पानी की बूंद की तरह। मान लीजिए आपको दस दिन पानी न दिया जाए और ग्यारहवें दिन एक कप पानी पिला दिया जाए। फिर सात दिन बाद एक कप और पानी पिला दिया जाए। कभी-कभी बीच में एक चम्मच पानी पिला दिया जाए। पिलाया क्या खाक जायेगा। तब तक तो आपका राम नाम सत्य हो चुका होगा।
यहीं और जानकारी दिए कि यूपी के 69 जिलों में से सरकार ने 57 को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया है। तमाम और उत्तर भारतीय राज्यों के बारे में भी सूचना दिए। यूपी वाली जानकारी को लेकर मुझे फिर झल्लाहट हुई। लगता है कि यहां बारिश जगह देख-देख कर हो रही है। गोरखपुर में हो रही है लेकिन सन्तकबीर नगर में नहीं, देवरिया में नहीं(इसे आप मेरठ, बुलन्दशहर और गौतमबुद्धनगर के सन्दर्भ में भी समझ सकते हैं)। जबकि जहां सीमा सटती है वहां जिलों के बीच की दूरी तो फिट और इन्च में भी नहीं होती। खेत का एक हिस्सा एक जिले में होता है तो दूसरा हिस्सा दूसरे जिले में। कहीं बारिश शरारत तो नहीं कर रही। खेत के एक हिस्से में बरस रही हो और दूसरे हिस्से में नहीं। या कहीं शरारत सरकार की है। शरारत नहीं जनता के साथ बदला। जनता को सजा। वह भी चुनी हुई सरकार द्वारा एक जनतान्त्रिक राज्य में। लखनऊ बैठे संवाददाता से मात्र एक लाइन पूछ लिए होते तो वह तुरन्त सारा खेल बता देता। लेकिन इतना टाइम कहां और इतनी गम्भीरता कहां। धरती से जुड़ाव होता अनुभव होता तो यह खेल अपने आप समझ में आ जाता कि 90 प्रतिशत भाग में भयंकर सूखा है और 10 प्रतिशत में बारिश। ऐसा कैसे? कहीं इन्द्र देवता डंडा लेकर तो नहीं खड़े हैं कि यहां बारिश करो... न...न... वहां नहीं। जबकि पड़ोसी राज्य भी सूखे-सूखे हैं। नहीं तो मान लेते की सरहदी जिलों में हो सकता है कि बारिश हुई हो। ऐसा कुछ सोच लेते।
अब और देखिए... जुलाई के अंतिम हफ्ते में दिल्ली में एक दिन दो-तीन घण्टे बारिश हुई। इतना कोहराम मचाए कि मुझे लगा दिल्ली बह जायेगीउस समय मैं गोरखपुर में बैठा था। ऐसा हाइप क्रिएट किए कि लगा जो लोग रास्ते में हैं अब वे कभी अपने घर न जा पायेंगे। जमुना-लाभ ले लेंगे। जबकि सारी दिक्कत हमारी बसाहट और बनावट की वजह से उपजी थी। बारिश की वजह से नहीं। बारिश तो होनी ही चाहिए। अब दीवार कमजोर और उसकी चुनाई में खामी होगी तो गिर ही जायेगी। इसमें हल्की सी बारिश का क्या कुसूर। चलिए बारिश को प्रत्यक्षरूप से कुसूरवार नहीं ठहरा रहे थे न सही लेकिन बता यही रहे थे कि इतनी बारिश हुई कि दीवार गिर गई और लोग मर गए। जाम लग गया तो बारिश क्या करे। उसके बहने का रास्ता क्यों बन्द किए, इतनी गाड़ियां क्यों खरीद लिए? बारिश की दो बूंद पड़ते ही, स्मैकिए की तरह चिहुंकते क्यों हों? लगता है कि मिट्टी के ढेले हैं गल जायेंगे। मैंने शहरों में अधिकांश लोगों को देखा है कि दो बूंद पड़ते ही छाये की तरफ बेतहाशा भागते हैं। अरे आराम से जाइए दो-चार मिनट में छत या छाया मिल ही जायेगी।
(मूल लेख रात तीन-साढ़े तीन बजे दिमाग में लिखा गया अब स्मृति के आधार पर उसे प्रस्तुत किया जा रहा है। जाहिर है वह रवानी और धार तो नहीं आ पायेगी। यही तो दिक्कत है।)

2 comments:

समयचक्र said...

आपके विचारो से सहमत हूँ ये बारिश कहाँ जानते है तभी तो एक बार में सब कुछ लिख देते है जैसे बारिश कम ज्यादा अधिक होगी कही बारिश ग्रह के साथ होगी कही नहीं होगी और कही कहीं बारिश तूफानी हवाओं के साथ होने की संभावना है आदि आदि और ये लाइने टी.वी. वाले दुहराते रहते है

यशवंत सिंह yashwant singh said...

guru, pasine mein dub ke daaru piyo, indra ki maa chud jaayegi. Phir khud baarish ayegi.